गिरफ्तारी के दौरान नागरिक अधिकारों का विधिक विश्लेषण

 

अभिषेक जाट, अधिवक्ता


प्रस्तावना

विधिक प्रक्रिया में गिरफ्तारी एक अत्यंत महत्वपूर्ण चरण है जिसमें नागरिक अधिकारों का संरक्षण सर्वोपरि है। संविधान और दंड प्रक्रिया संहिता द्वारा प्रदत्त अधिकारों की सम्यक जानकारी प्रत्येक नागरिक के लिए अनिवार्य है। प्रस्तुत लेख इन अधिकारों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है।

गिरफ्तारी के समय विधिक प्रावधान

कार्यवाही में सहयोग एवं आत्मसंयम

न्यायिक प्रक्रिया के अनुपालन हेतु अधिकारी के प्रति संयमित व्यवहार अत्यावश्यक है। गिरफ्तारी का प्रतिरोध अतिरिक्त आपराधिक दायित्व उत्पन्न कर सकता है, अतः शांतिपूर्ण सहयोग सर्वथा उचित है।

अभियोग की अधिसूचना

विधिक प्रावधानों के अंतर्गत (BNSS की धारा 48(1)) गिरफ्तारी प्राधिकारी का यह परम कर्तव्य है कि वह अभियुक्त को गिरफ्तारी के संपूर्ण कारणों से अवगत कराए।

अजमानतीय अपराधों हेतु लिखित आधार

अजमानतीय अपराधों में गिरफ्तारी के समय अधिकारी द्वारा लिखित में गिरफ्तारी के आधार का प्रस्तुतीकरण अनिवार्य है, जिससे अभियुक्त को अपने बचाव की तैयारी का अवसर प्राप्त हो सके।

विधिक अधिकारों का क्रियान्वयन

संबंधित व्यक्तियों को सूचित करने का अधिकार

BNSS की धारा 48(2) के अनुसार, गिरफ्तारी अधिकारी का यह दायित्व है कि वह अभियुक्त के परिवार, मित्र अथवा निर्दिष्ट व्यक्ति को गिरफ्तारी एवं अभिरक्षा स्थल की सूचना अविलंब प्रदान करे।

विधिक परामर्श का अधिकार

पूछताछ के दौरान अभियुक्त को अपनी पसंद के अधिवक्ता से परामर्श का अधिकार प्राप्त है (BNSS की धारा 48(3))। यद्यपि यह अधिकार संपूर्ण पूछताछ के दौरान अधिवक्ता की निरंतर उपस्थिति सुनिश्चित नहीं करता।

गिरफ्तारी ज्ञापन का तैयारीकरण

विधिक प्रक्रिया में गिरफ्तारी ज्ञापन का तैयारीकरण अनिवार्य है, जिसमें निम्नलिखित विवरण समाहित होने चाहिए:

  • गिरफ्तारी की तिथि, समय एवं स्थान का अभिलेखन
  • गिरफ्तारी के आधारों का उल्लेख
  • स्वतंत्र साक्षी (अधिमानतः परिवारजन अथवा स्थानीय निवासी) का हस्ताक्षर
  • अभियुक्त का हस्ताक्षर
  • गिरफ्तारकर्ता अधिकारी का प्रतिहस्ताक्षर

ज्ञापन प्रति का नि:शुल्क प्रदाय

अभियुक्त को गिरफ्तारी ज्ञापन की एक प्रति नि:शुल्क प्रदान की जानी अनिवार्य है।

पश्चात्वर्ती न्यायिक कार्यवाही

न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुतीकरण

BNSS की धारा 56 के अनुसार, अभियुक्त को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर (यात्रा समय को छोड़कर) न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाना अनिवार्य है। इस प्रावधान का उल्लंघन अभिरक्षा को अवैध ठहराता है।

जमानत संबंधी प्रावधान

जमानतीय अपराधों में जमानत या बंधपत्र प्रस्तुत करने पर रिहाई का अधिकार प्राप्त है (BNSS का अध्याय IX)। अजमानतीय अपराधों के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष जमानत आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है।

चिकित्सीय परीक्षण का अधिकार

BNSS की धारा 57 के अंतर्गत, अभियुक्त को पंजीकृत चिकित्सक द्वारा चिकित्सीय परीक्षण का अधिकार प्राप्त है, जो अभिरक्षा में रहने पर प्रत्येक 48 घंटे पर दोहराया जा सकता है।

आत्मरक्षा हेतु विधिक सावधानियां

आत्म-अपराधीकरण के विरुद्ध संरक्षण

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) के अनुसार, अभियुक्त को स्वयं के विरुद्ध साक्षी बनने हेतु बाध्य नहीं किया जा सकता। अपराधीकरण संबंधी प्रश्नों का उत्तर देने से बचना उचित है।

विधिक परामर्श के बिना दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर न करें

अभियुक्त को विधिक परामर्श की अनुपस्थिति में किसी भी बयान या दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने से परहेज करना चाहिए, जब तक कि ऐसा स्वेच्छा से न किया जा रहा हो।

निष्कर्ष

गिरफ्तारी के समय उपरोक्त विधिक अधिकारों का ज्ञान प्रत्येक नागरिक के लिए अत्यावश्यक है। यह ज्ञान न केवल अधिकारों के संरक्षण में सहायक है अपितु न्यायिक प्रक्रिया के सुचारू संचालन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विधिक जागरूकता ही नागरिक अधिकारों की सुरक्षा की प्रथम कड़ी है।

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